‘ईस्ट इण्डिया कंपनी’ शब्द सुनते ही हमारे मन में अँगरेज़
उभर आते हैं, जबकि असल में ये एक भ्रम है. ब्रिटेन के अलावा कई देशों ने अपनी-अपनी
ईस्ट इण्डिया कम्पनियाँ बनायीं. उन एक ही सबका मकसद एक ही था. ‘ओरियेंट’ से
व्यापार. ‘ओरियेंट’ शब्द से अलग-अलग देश अलग-अलग अर्थ निकालते हैं. लेकिन उन सब परिभाषाओं का सार है – ‘पूरब के
देश’. इनमें चीन, जापान, आज का इंडोनेशिया, मलेशिया, दक्षिण पूर्वी एशिया के देश
और भारत. किसी भी परिभाषा में भारत का ज़िक्र आता ही है.
एक ज़माना था, जब यूरोप समृद्ध नहीं था. सारी आर्थिक सम्पन्नता
ओरियेंट में सिमटी हुयी थी. अपनी अर्थव्यवस्था को बनाये रखने के लिए यूरोप के लिए
ज़रूरी था कि किसी न किसी युक्ति से ओरियेंट से व्यापार व्यवहार बनाये रखे. दूसरा
कारण कि ओरियेंट के कई उत्पादों की यूरोप में भारी माँग थी, जैसे गरम मसाले, रेशम,
कपास, इत्यादि.
लेकिन अड़चन एक थी. रास्ते में मुस्लिम सल्तनतें आतीं थीं,
जिनसे उनका सदा से ही संघर्ष चला आ रहा था. ये बात है आज से लगभग 600 साल पहले की.
एक तरकीब ये निकली कि अरब जगत को छुए बिना अफ्रीका का चक्कर लगाकर भारत पहुँचा
जाए. इस मानचित्र (मैप) में देखिये.
![]() |
पुर्तगाल का ओरिएंट पहुँचने का मार्ग |
दूसरा विकल्प था कि चूँकि पृथ्वी गोल है तो अटलांटिक
महासागर के रास्ते पश्चिम की ओर से चलने पर कभी न कभी पूरब तक पहुँचा जा सकता है.
![]() |
अटलांटिक के रास्ते ओरिएंट पहुँचने का विकल्प |
अफ्रीका के विकल्प पर पुर्तगाल ने काम किया और पश्चिम से पूरब की ओर निकलने का
विकल्प स्पेन को पसंद आया. उस ज़माने में स्पेन के मायने थे, कैस्तील और ऐरेगौन के
दो बड़े राज्य. कैस्तील इसमें अधिक रुचि लेता था. तो कोलंबस रवाना हुआ 1492 में अटलांटिक
के रास्ते पूरब की ओर और भारत न पहुँचकर आ गया अमेरिका, जो भविष्य में भारत से भी
कई गुना अधिक मूल्यवान सिद्ध हुआ.
दूसरी ओर अफ्रीका का चक्कर लगाकर भारत पहुँचने के लिए पुर्तगाली
नाविकों ने प्रयत्न किये. 1488 तक बर्थोलोम्यो डियाज़ ने केप ऑफ गुड होप छू लिया और अफ्रीका के दक्षिणी छोर को पार करता हुआ आज के दक्षिण अफ्रीका के मोर्सेल बे तक
जा पहुँचा.
लेकिन तूफ़ान से बेज़ार होकर उसे लौटना पड़ा, और उसके मार्ग पर
आगे चलकर वास्को डी गामा 1498 में दक्षिण भारत में कालीकट पहुँचा. यहाँ से यूरोप
के देशों के लिए भारत का रास्ता खुल गया.
फिर एक एक करके इंग्लैंड, हौलैंड, फ्रांस, डेनमार्क,
स्वीडन, इत्यादि देशों ने इस व्यापार के रास्ते को अपनाया. इंग्लैंड ने सन सोला सौ
में ओरियेंट से व्यवस्थित व्यापार करने के लिए अपनी इंग्लिश ईस्ट इण्डिया कंपनी
बनाई. उसको देखकर हौलैंड ने डच, फ्रांस ने फ्रेंच और डेनमार्क ने डैनिश ईस्ट
इंडिया कम्पनियाँ बना लीं.
कोलंबस तो अमेरिका पहुँचा था, लेकिन जानकारी कि कमी के
कारण, उसे लगा कि भारत पहुँच गया है. इसीलिए उसने उसको इंडीज़ कहा और वहां के मूल
निवासियों को ‘इन्डियन’. उदहारण के लिए, रैड इन्डियन.
अब पूरब में भी एक इंडीज़ था और पश्चिम में भी. फर्क करने के
लिए पूरब में ईस्ट इंडीज़ बन गए और पश्चिम में 'वैस्ट इंडीज़'.
जिस प्रकार ईस्ट इंडीज़ से व्यापार करने के लिए ईस्ट इण्डिया
कंपनियाँ बनीं, वैसे ही वैस्ट इंडीज़ से व्यापार करने के लिए वैस्ट इण्डिया कंपनियाँ भी बनीं.
तो निष्कर्ष ये निकलकर आता है कि केवल अंग्रेजों की ही नहीं
बल्कि कई और देशों की अपनी-अपनी ईस्ट इंडिया कंपनियाँ थीं. न सिर्फ इतना, कई देशों
ने वैस्ट इन्डिया कंपनियाँ भी बनायीं.
https://youtu.be/8APQzY1FKLk
No comments:
Post a Comment