इतहास पढ़ना क्यों ज़रूरी ये
बताने की ज़रुरत नहीं है. कब, क्यों, कहाँ, कैसे ? ये सब प्रश्न जब अतीत से जुड़ते
हैं, तो कुल मिलाकर इतिहास कहलाता है.
समय के साथ-साथ तौर तरीके
बदल जाते हैं और स्थितियाँ और परिस्थितियाँ भी. तकनीकी विकास तो हो गया, लेकिन इतिहास
की ‘स्कूली’ पढ़ाई का ढंग अभी भी एक सदी पुराना है. ये निंदा का नहीं चिंता का विषय
है. आज अगर किसी भी आम भारतीय से पूछा जाए कि सबसे उबानेवाला वाला विषय कौनसा है. तो जवाब तय ही है – ‘इतिहास’. इतिहास में मज़ा नहीं आये, ये न तो प्रकृति का कोई नियम है और न ध्रुव सत्य.
सबसे ज़्यादा गौर करने लायक
बात ये है कि इतिहास अक्सर नक्शों (मानचित्रों) के बिना पढ़ाया जाता है. और नक्शों
के बगैर इतिहास पढ़ना सीधा पहाड़ चढ़ने जैसा होता है. टटोलने से अंदाजा लगाया जा सकता
है, लेकिन आँख तो आखिर आँख ही होती है. सामाजिक विज्ञान ‘विजुअल एड’ के बिना असंभव
अगर न भी हुआ, तब भी निरर्थक तो निश्चित ही होता है. पढ़ेंगे सब कुछ, समझेंगे
कुछ-कुछ, निकलेगा कुछ भी नहीं.
इसी बात को ध्यान में रखते
हुए मैंने 600 ईसा-पूर्व से अब तक
के नक़्शे बना लिए हैं. इससे देखनेवाले को एक अंदाजा लग जाता है कि पिछली पच्चीस
सदियों में दुनिया कैसे-कैसे बदली, कहाँ-कहाँ क्या परिवर्तन आये. इतना इन नक्शों
से समझ में आ जाता है. सोच की एक ग्रंथि खुलते ही, सोच का रास्ता साफ़ हो जाता है
और इतिहास रुचिकर (दिलचस्प) बनता चला जाता है.
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1783 का विश्व |
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1914 का विश्व |
एक बात और याद रखियेगा कि ये राजनैतिक इतिहास है, सांस्कृतिक या सैन्य इतिहास नहीं. इसलिए इसका विस्तार सीमित है. अपने वीडियोज़ के माध्यम से मैं धीरे-धीरे विश्व का ढ़ाई हज़ार साल का इतिहास समझाऊँगा. नक़्शे तो इन वीडियोज़ की विशेषता रहेगी ही, लेकिन उसके अलावा जितना मुझसे बन पड़ेगा, उतना मनोरंजक और बेहतर मैं बनाऊँगा. आगे का मार्ग आपके मार्गदर्शन पर निर्भर करेगा.
आशा है मेरा ये प्रयास आपको पसंद आएगा. मेरे यूट्यूब चैनल ‘हिस्ट्री गुरु’ के माध्यम से मैं इतिहास को दिलचस्प बनाने का प्रयास कर रहा हूँ. एक बार ये वीडियो देखेंगे तो आपको अंदाज़ा लग जाएगा.
तो कृपया इस वीडियो को देखिये और बताइये.
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